निशी की आंखों से आज नींद कोसों दूर थी, अतीत के धुँधले पड़ चुके पन्ने फिर उसकी आंखों के सामने एक एक करके पलटते जा रहे थे । विनय के साथ बिताए हुए वो सात महीने जिसने उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी थी फिर उसके दिमाग पर अपनी पकड़ बनाएं जा रहे थे, डूबती जा रही थी वो उन यादों में जिन से उबर पाना उसके लिए आसान नहीं था। खुद को संभालने में दस साल लग गए थे उसे। अब उसने खुद को संभालना, मुस्कुराना, खुश रहना सीख लिया था, और आज एक प्रतिष्ठित स्कूल की अध्यापिका बनके अपने जीवन की अकेली हमसफर थी।
पर अचानक आई विनय की कॉल ने उसे फिर उसी अंधकार में ले जाकर पटक दिया था जहां से निकलने में उसे इतने बरस लग गए थे “हेलो मैं विनय बोल रहा हूं निशी क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूं” विनय के मुंह से ये शब्द सुनकर जड़वत् हो गई थी निशी “हम्म्म्म” के अलावा कुछ कह नहीं पाई “क्या तुम मुझे सुन रही हो मुझे माफ कर दो निशी मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं हमारे बीच उन दिनों जो भी कुछ हुआ उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं, मैं अपना परिवार चाहता हूं तुम्हें चाहता हूं, अपने घर की लक्ष्मी को वापस लाना चाहता हूं, तुम सुन रही हो ना” विनय ने कहा। उसके जवाब में फिर से “हम्म्म्म” ही कह पाई।
आज जाने क्या हो गया था विनय को जिस शख्स ने कभी निशी से बात करना भी जरूरी नहीं समझा जिसने उसकी किसी काॅल का जवाब तक नहीं दिया था आज वह कह रहा था कि वह उससे प्यार करता है उसे वापस बुलाना चाहता है। घर परिवार रिश्ते नाते सब ने कितना समझाया था विनय को। शादी एक पवित्र बंधन है इसे यूं ही नहीं तोड़ सकते पर विनय ने किसी की नहीं सुनी उसने सिर्फ यही कहा “इसे अपनी पत्नी नहीं मानता, हां अगर यह चाहे तो घर में रह सकती है पर मेरा इससे कोई रिश्ता नहीं है” कितना रोई थी निशी कितना गिड़गिड़ाई थी हाथ जोड़े थे उसके सामने, “आखिर क्या गलती है मेरी क्या किया है मैंने क्यों आज तक मुझे नहीं अपना पाए तुम जैसा चाहते हो वैसा ही करूंगी पर यह तो ना कहो कि कोई रिश्ता नहीं है मुझसे” “हां नहीं है कोई रिश्ता हमारे बीच यह शादी मेरे घर वालों ने जबरदस्ती करवाई थी तो कर ली मैंने, तुम इस घर की बहू तो हो पर मेरी पत्नी नहीं” इतना कहकर चला गया था विनय इसके बाद फिर कभी नहीं मिला स्वाभिमानी निशी ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए वो घर छोड़ देना ही सही समझा।
पर दिल के किसी कोने में एक आशा की किरण आज भी टिमटिमा रही थी उसने कई सालों तक विनय से बात करने की कोशिश की पर हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी। आखिर चार साल की कोशिश के बाद उसकी आशा की किरण ने भी दम तोड़ दिया, जिसके बाद उसने अपनी सारी ताकत खुद को समेटने और आत्मनिर्भर बनाने में लगा दी।
सब कुछ ठीक चल भी रहा था कि आज आई विनय की कॉल ने उसे फिर अतीत में ले जाकर पटक दिया था। आखिर इतने सालों बाद विनय को उसकी याद कैसे आई और क्यों? इतने सालों बाद उसे अपनी गलती का एहसास क्यों हुआ? शादी के बाद उन सात महीनों में विनय ने कभी ठीक से उसकी तरफ देखा भी नहीं फिर क्यों आज उसका साथ चाहता है? आखिर क्यों…..?
विनय के आखिरी शब्द रह-रहकर उसके दिमाग में गूंज रहे थे। “मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा मुझे विश्वास है कि तुम मुझे माफ कर दोगी” इतना कहकर उसने फोन रख दिया। विनय के फोन रखने के बाद निशी के मन में तूफान मच गया, “माफ कैसे माफ कर पाऊंगी मैं विनय को कैसे, मन में अपने सपनों का खूबसूरत संसार लिए विनय के साथ शादी करके उसके घर गई थी, अकेले ही सही पर न जाने कितने सपने बुने थे, मन ही मन कितना खुश थी मैं, मुझे मेरे सपनों का राजकुमार मिल रहा था, एक खूबसूरत दुनिया बना ली थी मैंने अकेले ही, पर शादी की पहली रात को ही विनय ने उन सारे सपनों को कुचल दिया। मेरी सारी कोशिशों को नाकाम कर दिया, कभी देखा ही नहीं उसने मेरी तरफ, कभी समझने की कोशिश ही नहीं की मेरी भावनाओं को। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी शादी का अंत इस तरह होगा।
तब से अकेले ही अपनी हमसफर बन कर जी रही हूं। उसके बाद भी कितनी बार मम्मी पापा ने दूसरी शादी के लिए जोर दिया पर अब शादी पर विश्वास ही नहीं रहा। और आज विनय ने कितनी आसानी से कह दिया कि मैं माफ कर दूं उसे… पर कैसे… कैसे…??
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