प्रीति, बेबाक इंडिया आज भी भारत के अंदर ऐसी जगह है जहां मासिकधर्म और माहवारी (Menstruation) को एक बीमारी समझा जाता है। माहवारी के समय लड़कियों और महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। कहिं एक लेख पढ़ा था जिसका शिर्षक था “माहवारी (Menstruation) कोई बीमारी नहीं ” जिसमें आन्ध्र प्रदेश के गंतहल्लागोटी गांव में महिलाओं के माहवारी (Menstruation) होने और गर्भवती होने के पश्चात गांव से दूर बांस व ताड़ के पत्तो में झोपड़ी-झुग्गी बनाकर रहने और पानी बिजली सहित कई अन्य मौलिक अवश्यकताओं से दूर रखा जाता है, सिर्फ इसलिए कि उनकी वर्षों से चलती आ रही परंपरा को चोट न पहुंचे। परंपरा का सम्मान करना हमारा मूल कर्तव्य है लेकिन कुप्रथा नहीं।
इस तरह की कुप्रथा मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्किल इंडिया,बनने में बाधा साबित होगी। भारत का एक सोचा हुआ सपना अधूरा रह जाता है जब ऐसी प्रथायें उजागर होती है। एक तरफ हमारे भारत मे बेटियों के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, सुकन्या समृद्धि योजना, गर्वती महिला के लिए आर्थिक योजना जैसी अनेकों योजने बनाई गई है, सिर्फ इसलिए क्योकि महिलाएं, बेटिया आज किसी भी मायने में लड़कों से कम नहीं। उन्हें सम्मान दिलाने के लिए भारत अपना परचम लहरा रहा है।
लड़िकयां लड़को के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं या ये कहें कि कई जगहों पर लड़को से ज्यादा कामायाब हैं। वो लड़कियों के लिए एक आदर्श बनी हैं। भारत के कुछ राज्य के गाँव अभी भी ऐसे क्यों हैं? जहां पुरुष प्रधानता फलता-फूलता दिखाई देता है। हम दूर बैठे इस तरह की प्रथा को नहीं जान पाते। ये शर्मसार करने वाली बात है कि माहवारी (Menstruation) में इस तरह की घटनाएं हमे आज भी सुने में आ रही हैं। जहां हमारा देश मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया बनने की बात कर रहा है। इसके लिए आज हमारे बीच एक कुशल और जागरूक पत्रकार एवं लेखक का होना बहुत ज़रूरी हो गया है। इस तरह की कुप्रथाओं को सिर्फ हम ही खत्म कर सकते हैं। अवश्यक है केंद्र सरकार और राज्य सरकार को भी मिलाकर इसके लिए पुख्ता कदम उठाने चाहिए। सरकार अपनी योजनाओं को ऐसे न साबित करे कि वो इन योजनाओं को बनकर भूल गई है।
Hi, this is a comment.
To get started with moderating, editing, and deleting comments, please visit the Comments screen in the dashboard.
Commenter avatars come from Gravatar.